Saturday 22 September 2012


MIRAGE

what is my fault,
where is my halt,
how  far should i run,
how to show you the pain,
pain of a dear,
searching mask he wear,
this is a mirage,
looking water at the far,
far is now a fear,
create hallow over my tears,
a subject over the task,
to make read me up,
to create a reflection,
a reflection to my humble.

BY: Prince kumar

mirror almight

MIRROR ALMIGHTY

O!  MIRROR, MY ALMIGHTY,
if you have ears,
let it hear,
is this what I am,
OR, is this my past,
is this what i pretended,
OR, is this my future,
whatever you create,
i can only see the reflection,
which you have putted for the distinction,
whatever i have attended,
is WHAT i always have pretended,
let guide me ALMIGHT,
because this is the hide,
which is out of mind.

BY: Prince kumar.

Sunday 12 August 2012

कविता एक सोच या रचना  

यह शब्दों की है नुमाइश,
शब्दों से बना फ़साना,
जब शब्द हो जुबा पे,
यूँ ठहरता नहीं दीवाना.

हम डूब से जाते है,
जब अर्ज हो किन्ही का,
यह शुष्क शांति है,
जो बहता नहीं हवा सा.

यह सुस्त लब्जो की है शिकायत,
जो ठहरती नहीं अधर पे,
जब सुर्ख होंठों की हो गुस्ताखी,
यूँ बनता नहीं फ़साना.

हम चल से बस पड़े है,
उन सुन्न रास्तों पे,
जहाँ से है गुजरता,
शब्दों का काफिला है.

हम सोच में है डुबे,
ठहरे से एक बिंदु पे,
जब शब्दों की हो परिधि,
तब क्या शौक ठहरने का.

मैं ठहर सा यूँ जाता,
जब कोई शब्द मुझे बुलाता,
एक होड़ की चाहत में,
मैं लब्जों से गुनगुनाता.

यह होड़ की बातें है,
चाहत है यह किसी का,
जो अर्ध में है डूबा,
यह अर्थ है उसी का.

यह तर्क की बातें है,
अर्थ है उन्ही से,
जो संदर्भ के है अभिलाषी,
यह शब्द है उन्ही से,

मैं तप के इस पटल पर,
बैठा बन कर साधक,
वह मार्ग ढूंढता हूँ,
जो ले जाये फलक तक.

यह सोच की तपश्या है,
साधक ही एक भगता है,
साधक ही है सरोकारी,
साधक ही समझता है.

मैं अथक यहि पे बैठा,
शब्दों से जुड़ गया हूँ,
अर्थ की चाहत में,
अर्थात तक पहुँच गया हूँ.

यह सोच ही आविष्कारी,
सोच में गहनता है,
शब्द तो हैं मोती,
जिसे संदर्भ पिरोता है,

यह शब्दों की एक कड़ी है,
या स्वयं रचना है,
यह संदर्भ की चाहत है,
या सन्देश की कल्पना है.

हम स्वयं ही हैं जननी,
दो टूक शब्द पिरोंते हैं,
फिर अर्थ की समझ में,
शब्दों से उलझते हैं,

यह सोच की कड़ी है,
संदर्भ का है संयोजन,
यह तर्क की लरी है,
अर्थ का है उद्घोसन.

मैं तप के इस पटल पे,  
बैठा बन कर साधक,
संदर्भ की चाहत में,
अर्थात तक पहुँच गया हूँ.

कविता लेखक-प्रिन्स कुमार. 

guess the dominance


World through the eyes of friends



Alone silence behind beauty


Sunday 5 August 2012

यह रात की मायूसी है, जो अपने सबाब पर है. यह धीरे-धीरे अपने उन्माद में काली चादर ओढ़े गहनता की ओर बढ़ रही है. यह उन्माद कुछ ऐसा है जो अपने बस में नहीं होता, प्यास बढ़ता जाता है और पानी घटती जाती है, परन्तु हमें इंतजार उस पल का होता है जब हम शून्यता की स्थिति  में आनंद की छोड़ तक जाते है. यू कहिये की     
हम उजाले की सामना करने की बल पाले उस अचेतना की ओर जाने को तैयार हो रहे है जो एक निश्चित कड़ी है जिसमे हम जकड से चुके है. यह बस एक संजीवनी है जो हमें दृढ़ता से आने वाले कल और कर्मो की सामना करने का बल देता है.
यह मायूसी और उसके साथ आने वाली शून्यता निश्चित है परन्तु हमने कभी इस शून्यता का संदर्भ न सीखा. हमने इस अचेतना का कारण न जाना, और संवाद की होड़ में उस निरर्थकता की ओर बढे जा रहे है जो उजाले की  भाँती अशान्ति, होड़, लाभ, रोजगार, नज़ारे और बदलाव की कुंजी से हमें ही आप संवाद के रूप में बदल दिया है. तात्पर्य यह नहीं की हम उस समय या कर्मो का भोगी बन गए है जो पक्षों में बंट गए है, बल्कि सच्चाई यह है की हम उस पक्ष को भूल गए है जो हमारे आत्मा और चित को शांति प्रदान करता है. यह पक्ष हमारे परिद्रिश्यता को उजागर करता है. यह विश्लेष्ण की उस छवि को साक्ष्य करता है जो हमारी आन्तरिक चेतना से हमें रु-बरु करवा दे, परन्तु हम पर अचेतना हावी है, हम धीरे-धीरे अचेतना को महसूस करते है और रात की मायूसी हमें शून्यता की ओर ले जा रही है.
लेखनी -प्रिन्स कुमार  

Saturday 4 August 2012


जब कभी ओट से इठलाती बेलब्ज़ तेरी याद आती है ,
जब कभी पत्तो की फरफराहट साज बनाती है,
जब कभी पानी की बुँदे ताल सजाती है, 
जब इस सुने से मन में पंखो की  फरफराहट भरी आवाज घर कर जाती है,
जब इस मन की पटल पर इक कौंधती पर खामोश सन्नसन्नाहट सी छाती है, 
तब बस उनकी याद आती है, याद आती है, 
वह अपना घर, वह आजादी,
खुली हवा में यार्रों संग मस्ती,
तालाब के मुहाने पर जाना, कंकर फेक यादों को संजोना,
कागज की नाव की कस्ती,
बारिस का मौसम और बूंदों का सुर,
दोस्तों संग नंगे पाँव की दौड़,
यह बेलब्ज़ तेरी याद दिलाती  है,
सुने मन पटल में पंखो की फरफराहट भरी आवाज घर कर जाती है,
तब  इस मन की पटल पर फिर खामोश सन्नसन्नाहट सी छा जाती है,
क्यों वह पल याद आती है, याद आती है. 
लेखन------ प्रिंस 
so much but a contribute to the beauty
bond to beloved

Saturday 21 April 2012

PAST OR FUTURE

O!  MIRROR, MY ALMIGHTY,
if you have ears, let it hear,
is this my past,
or my future,
i can see the reflection, which you have putted for the distinction,
because this is the hide,
which is out of mind.

MIRAGE OF HUNGER

what is my fault,
where is my halt,
how much should i run,
how can i show you my pain,
this is mirage of hunger,
a reflection to my humble.

where is my home

Once a animal was wandering through a forest in the search of his home.
Home,Which is his right.
Home, He should get as partition by god between him and humans.
Is this the land left for him.
He asked the question to me,
I said i am answer less,
but it use to click in my mind, how can i excuse my self.
                                                            prince

Saturday 14 April 2012

mamma my little belly demands more


pension days

Let me feel the state,
Let me fill the space,

Let me feel the sound,
Let me fill the soul,

It is bound of the signature,
Let it calm down in my nature.

prince