Sunday 5 August 2012

यह रात की मायूसी है, जो अपने सबाब पर है. यह धीरे-धीरे अपने उन्माद में काली चादर ओढ़े गहनता की ओर बढ़ रही है. यह उन्माद कुछ ऐसा है जो अपने बस में नहीं होता, प्यास बढ़ता जाता है और पानी घटती जाती है, परन्तु हमें इंतजार उस पल का होता है जब हम शून्यता की स्थिति  में आनंद की छोड़ तक जाते है. यू कहिये की     
हम उजाले की सामना करने की बल पाले उस अचेतना की ओर जाने को तैयार हो रहे है जो एक निश्चित कड़ी है जिसमे हम जकड से चुके है. यह बस एक संजीवनी है जो हमें दृढ़ता से आने वाले कल और कर्मो की सामना करने का बल देता है.
यह मायूसी और उसके साथ आने वाली शून्यता निश्चित है परन्तु हमने कभी इस शून्यता का संदर्भ न सीखा. हमने इस अचेतना का कारण न जाना, और संवाद की होड़ में उस निरर्थकता की ओर बढे जा रहे है जो उजाले की  भाँती अशान्ति, होड़, लाभ, रोजगार, नज़ारे और बदलाव की कुंजी से हमें ही आप संवाद के रूप में बदल दिया है. तात्पर्य यह नहीं की हम उस समय या कर्मो का भोगी बन गए है जो पक्षों में बंट गए है, बल्कि सच्चाई यह है की हम उस पक्ष को भूल गए है जो हमारे आत्मा और चित को शांति प्रदान करता है. यह पक्ष हमारे परिद्रिश्यता को उजागर करता है. यह विश्लेष्ण की उस छवि को साक्ष्य करता है जो हमारी आन्तरिक चेतना से हमें रु-बरु करवा दे, परन्तु हम पर अचेतना हावी है, हम धीरे-धीरे अचेतना को महसूस करते है और रात की मायूसी हमें शून्यता की ओर ले जा रही है.
लेखनी -प्रिन्स कुमार  

1 comment:

  1. i like ur write up...........good keep it up ,impressive.

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